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आस्था केंद्र – कलयुग में हारे का सहारा है खाटू श्याम का पावन धाम

राजेंद्र रावत

आस्था के केंद्र के दूसरे चरण में हम आपको आवगत करवा रहें है राजपूतों की धरा राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गाँव से बाबा खाटू श्याम के पावन धाम से l

बाबा खाटू श्याम जी का सम्बन्ध महाभारत काल से रहा है l जिसका विवरण महाभारत के ग्रन्थ में स्पष्ट रूप से है कि वो पाण्डु पुत्र भीम और हिडिम्बा के पौत्र और घतोत्कच व मौरवी की संतान थे जिनका नाम बर्बरीक था l माता मौरवी ने उनसे वचन लिया था कि वे हारे के सहारे बने l माँ से अनुमति ले कर वे महाभारत के युद्ध में भाग लेने के इरादे से अपने नीले घोड़े पर सवार होकर अपने तीन चमत्कारी बाणो के साथ महाभारत के रण में पहुंच गए l

जिसकी सूचना पा कर श्री कृष्ण स्वयं ब्राह्मण वेश बना कर उनकी परीक्षा लेने पहुंच गए और उस बालक बर्बरीक से पुछा कि तुम किस ओर से युद्ध करोगे और तुम्हारी शक्ति क्या है l तब उस बालक ने प्रणाम करते हुए कहा कि वे जो भी हारेगा उसकी ओर से युद्ध लड़ेंगे l ब्राह्मण रुपी कृष्ण ने परीक्षा के कहा अपना कौशल दिखाओ और एक वृक्ष की ओर इशारा कर कहा इसके पत्तों को भेद कर दिखाओ और एक पत्ते को अपने पाँव के नीचे छुपा लिया तो उनका बाण सभी पत्तों को भेद कर ब्राह्मण के पाँव के पास घूमने लगा तो कहा बर्बरिक ने अपना पाँव हटालो हे ब्राह्मण नहीं तो पत्ते के साथ साथ आपके पाँव को भी मेरा बाण छेद देगा l उनकी इन शक्तियों को देख श्री कृष्ण को लगा कि महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार होनी निश्चित है तो केवल मात्र इस योद्धा के चलते परिणाम बदलते रहेंगे और यदि इसने तीनो बाणो का प्रयोग किया कोई भी योद्धा नहीं बचेगा l क्योंकि जो पक्ष भी इस योद्धा को पराजित होता हुआ दिखता तो ये उसी ओर से लड़ने लगता l उन्होने अपनी लीला दिखाई और कहा कि ये ब्राह्मण तुम से कुछ मांगे तो मना तो नहीं करोगे l इस मौरवी पुत्र ने कहा बिलकुल नहीं परन्तु आप साधारण ब्राह्मण नहीं हैँ आप अपने असली रूप को आओ मैं अगर युद्ध नहीं पाया तो कोई बात नहीं शीश दान दूंगा पर युद्ध को पूरा देख सकूँ ऐसा जतन बतलाओ और ब्राह्मण को अपने वचन की खातिर अपने शीश दान दे दिया l

 श्री कृष्ण ने भी उसे अपने दर्शन दिये और रणभूमि की एक ऊँची पहाड़ी पर उनके शीश को रख युद्ध को देखने का वरदान दिया और साथ ये भी कहा तुम कलयुग में हारे के सहारे बनोगे और मेरे श्याम नाम से जाने जाओगे l राजस्थान के खाटू गाँव ने प्रकट होकर हारों का सहारा बनोगे और भक्तो का उद्धार करोगे l

माना जाता है कि एक गाय जब खाटू गाँव के शमशान घाट के समीप से गुजर रही थीं तो उसके थनों से एक स्थान पर अपने आप ही दुग्ध धार बह निकली जब वहाँ खुदाई की गई तो बाबा श्याम के शीश की मूर्ति प्रकट हुई वो स्थान श्याम कुंड है और उसके समीप ही श्री श्याम का दिव्य मंदिर को स्थापित किया गया जोकि

गुरुग्राम से लगभग 250 कि 0 मी 0 दूरी पर स्थित है जहाँ लाखों की संख्या में प्रतिदिन भक्तजन पैदल, बस, रेल और अपने निजी वाहनों से बाबा श्याम के दर्शन करने पहुंचते हैँ और मनोकामना पूर्ण करते हैँ l कथाओं कि माने तो वहां के राजा रूपसिंह चौहान को स्वप्न में बाबा श्याम ने दर्शन दिये और उक्त स्थान पर खुदाई के बाद बाबा की मूर्ति प्रकट हुई और उन्होंने मंदिर का कराया l अनेकों भक्त निशान (बाबा के ध्वज और नारियल ) साथ रिंगस से तोरण द्वार होते हुए 18 कि0 मी0 की पैदल चाल कर मंदिर को प्रस्थान करते हैँ l बाबा को प्रसाद के रूप चूरमा, मिश्री-किशमिश- मावे, पेड़े, इत्र और फूल आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है l

कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को खाटू नरेश बाबा श्याम के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है इस दिन मंदिर में अत्यधिक संख्या में श्याम प्रेमी पहुँचते हैँ l

बाबा श्याम में अटूट आस्था रखने वाली उनकी अनन्य भक्त आरती जोकि अजमेर की रहने वाली थीं उन्हें कलयुग की मीरा नाम से पुकारा जाता था जिनका कुछ समय पूर्व सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी मानो बाबा श्याम के दरबार में चली गई l

हम आपको सभी भक्तों से अपील करते हैँ कि अपने वाहन व पदयात्रा सावधानी पूर्वक करें ताकि किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचें रहें l

यहाँ ठहरने के लिए धर्मशाला, लॉज और होटलों उचित व्यवस्था है l

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