भई यह घर आपने बहुत ही सही लोकेशन पर लिया है। इसकी बायीं ओर मार्केट, दायीं ओर मार्केट और बिल्कुल सीधे जाओ तो लोकल बस व ऑटो मिलने के लिए चौक! बहुत खुशकिस्मत हो आप!
जब हमने मकान खरीदा तब आसपास के लोगों का यही कहना था। वैसे हम इसी मकान में पिछले पांच साल से किराये पर रह रहे थे। तब छत पराई लगती थी, अब अपनी लगने लगी!
शुरू शुरू में हमने भी यह बात महसूस की थी और अब तो लोगों ने इस पर मोहर लगा दी थी।
हम यानी आमतौर पर मैं और बेटी ही बायीं ओर की मार्केट शाम को सब्ज़ी, दूध और दूसरे जरूरी सामान लेने जाते हैं। पत्नी को बाज़ार जाने का कम ही शौक है। वह कहती है कि आप गांव में रहते थे तो आप ही जाइये सब्ज़ियां लेने! अब पांच साल तो किसी अनजान जगह और शहर में अपनी और दूसरों की पहचान में लग ही जाते हैं और हमारी भी मार्केट वालों से जान पहचान हो गयी। इतना भरोसा तो जीत ही लिया कि यदि भूलवश कमीज़ बदलते समय पैसे डालने रह गये और दुकान पर सामान खरीदने के बाद पता चला तो दुकानदार कहने लगे कि कोई बात नहीं भाई साहब, आप सामान ले जाओ! आप पर भरोसा है। हमारे पैसे कहीं नहीं जाते! आ जायेंगे! यह तो बरसों का भरोसा है और बनते बनते बनता है! यही नहीं आस पड़ोस भी अब दिन त्योहार पर घर की घंटी बजा कर उसमें शामिल होने का न्यौता देने लगा! हालांकि पहले पहल हमें पंजाब से होने के चलते रिफ्यूजी तक मानते रहे और यह दंश भी देश के किसी हिस्से में रहने पर झेलना ही पडता है सबको! अपने ही देश में रिफ्यूजी! फिर दिन बीतने के साथ साथ सब हंसने खेलने लगे हमसे!
अब मार्केट में सब्ज़ी की रेहड़ियां शाम के समय खूब लगती हैं, जैसे पूरी सब्ज़ी मंडी ही चलकर इस मार्केट में रेहड़ियों पर लद कर आ गयी हो! शाम के समय खूब चहल पहल और कितने ही कुछ जाने और कुछ अनजाने चेहरे देखने को मिलते हैं! पर एक बात मेरी समझ में न आ रही थी कि आखिर शाम के धुंधलके में या अंधेरा छा जाने पर ये रेहड़ी वाले बिजली कहां से लेते हैं ? इनकी रेहड़ियां इतनी जगमगाती कैसे हैं ?
इसका भी रहस्य खुला सिमसिम की तरह! एक दिन हम थोड़ा जल्दी ही मार्केट चले गये। क्या देखता हूँ कि एक आदमी हर रेहड़ी वाले से बीस बीस रुपये वसूल कर रहा है, बिल्कुल फिल्मी स्टाइल में! जैसे ही बीस रुपये हाथ में आते, रेहड़ी पर रोशनी जगमगाने लग जाती! यह कैसा जादू है ? रेहड़ी वाले गरीब आदमी, मुंह खोलते भी डरते! क्या करिश्मा है और बिना कनैक्शन बिजली आती कहां से है ? वैसे तो एक आम आदमी को इससे क्या लेना देना ? अरे आखें बंद कर, कानों में रुई डाल और चुपचाप सामान खरीद और सुरक्षित घर को लौट! वो लिखा रहता है न कि घर कोई आपका इ़तज़ार कर रहा है तो ऐसे में न बायें देख, न दायें, सीधा घर को देख और घर चल! पर मुझसे रहा नहीं जा रहा था। फिल्मी हीरो तो था नहीं कि उससे भिड़ जाता! बस, अंदर ही अंदर कसमसाता रहता कि आखिर यह हफ्ता वसूली क्यों ? वे गरीब, परदेसी रेहड़ी वाले खामोश रुपये देते रहते! देखते समझते तो और भी होंगे लेकिन वे मस्त लोग थे, सौदा सुल्फ लिया और ये गये और वो गये! कौन क्या कर रहा है, इससे क्या मतलब ?
पता चला कि यह सरेआम बिजली चोरी प्रशासन के ध्यान में आ ही गयी और आखिरकार यह हफ्ता वसूली कुछ दिन रुकी और फिर आठवां आश्चर्य हुआ जब सुनने में आया कि उसी अधिकारी की ट्रांसफर हो गयि, जिसने यह बिजली चोरी रोकी थी! हैं घोर कलयुग ? रेहड़ी वाले राहत की सांस भी न ले पाये कि हफ्ता वसूली फिर शुरू! सुनने में आया कि जो बिजली कनैक्शन देने आता था, वह तो मोहरा भर था, असली बाॅस तो उस एरिया का बड़ा नेता था! अब यह बात कितनी सच, कितनी झूठ, हम बीच बाज़ार कुछ नहीं कह सकते भाई! हमें माफ करो!
लेखक: कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।
